दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी
दोनों को एक नज़र में रज़ामंद कर गयी
शक हो गया है सीना खुशा लज़्ज़त-ए- फरग
तकलीफ-ए-पर्दादारी -ए- जख्म-ए-जिगर गयी
वो वादा-ए- शबनम की सरमस्तियां कहाँ
उठिए बस अब के लज़्ज़त-ए खाब-ए-शहर गयी
उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कु-ए-यार में
बारे आब आई हवा हवस-ए-बल ओ पर गयी
देखो तो दिल फरेबी-ए-अंदाज़-ए- नक्श-ए- पा
मौज-ए-खैराम-ए- यार भी क्या गुल कुतर गयी
मिर्ज़ा ग़ालिब
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