एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, August 16, 2014
यहाँ की मिटटी में दफ़न ग़ालिब है
क्यूँ ओढ़ती है दर्द ग़ज़ल मेरी
तुम्हार पूछना भी वाजिब है
क्या करूँ मेरा मुल्क है कुछ ऐसा
यहाँ की मिटटी में दफ़न ग़ालिब है
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