वही शाम
वही जाम
और वही तन्हाई
जैसे मिल बैठें हों तीन यार
गम-ए- इश्क़ भुलाने को
वही इश्क़
वही अश्क़
वही बेवफाई
कुछ भी तो नया नहीं
दास्ताँ-ए-इश्क़ सुनाने को
वही साज
वही आवाज
वही बेहद रुस्वाई
चलो जज्बात होठों तक लाएं
बुलाया है दर्द गुनगुनाने को
भावार्थ
वही जाम
और वही तन्हाई
जैसे मिल बैठें हों तीन यार
गम-ए- इश्क़ भुलाने को
वही इश्क़
वही अश्क़
वही बेवफाई
कुछ भी तो नया नहीं
दास्ताँ-ए-इश्क़ सुनाने को
वही साज
वही आवाज
वही बेहद रुस्वाई
चलो जज्बात होठों तक लाएं
बुलाया है दर्द गुनगुनाने को
भावार्थ
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