Tuesday, March 11, 2014

बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

हैं हर्फ़ वही अलफ़ाज़ वही
बस फनकार बदलते रहते हैं
दर्द-ए-जींद को कहने के
बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

नदिया वही बहाव वही
है पतवार वही और  नाव वही
अथाह सा बहता सागर है वही
बस अफ़कार  बदलते रहते हैं

मुझको बुलाती तेरी याद वही  
उस गम को भुलाती  रात वही 
दर्द-ए-वफ़ा कि सौगात वही 
बस किस्सा-ए-यार बदलते रहते हैं 

उसकी शर्म वही उसका ताव वही 
है दोनों के भीतर जलता अलाव वही 
है इश्क़ का आगाज़ वही अंज़ाम वही 
बस किरदार बदलते रहते हैं 

हैं हर्फ़ वही अलफ़ाज़ वही
बस फनकार बदलते रहते हैं
दर्द-ए-जींद को कहने के
बस अंदाज़ बदलते रहते हैं

भावार्थ 
११-मार्च-२०१४ 








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