उजाले की ओट में वो नन्हा सा दिया नहीं दीखता...
पुटाश के शोर में गरीबी का दर्द नहीं चीखता...
सलीम का तो हर दिन ही है चिंगारियों से भरा ...
वेल्डिंग और दिवाली में उसे खास फर्क नहीं दीखता...
कौन अब राम की राह बटोहेगा...
कौन अब मंगल गीत गायेगा...
कौन दीपो से संजोयेगा घर द्वार..
कौन इस महंगाई में दिवाली मनायेगा...
हजारो की मिठाई खायी...
लाखों के पटाखे टूटे...
हुए चंद खुशनुमा लोग...
करोडो दिल भूख से रूठे...
आज अँधेरे की रौशनी में दिवाली मनाई...
गाँव ने फिर शहर को बिजली दे दी भाई..
राम का शहर तो पता नहीं मुझे मगर ...
अयोध्या में लोगो ने सिर्फ मोमबती जलाई...
भावार्थ !!!
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