मौत के इर्द गिर्द मचलता रहता है...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...
साए सा वजूद लिए अपनी धुन में...
बेफिक्र है मौत के पैने कांटो से...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...
खाब का आशियाँ बुना इसने ...
फिर सपनो को हासिल किया जिसने...
मंजिल-ए-मौत की तरफ बढ़ता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...
तकदीर बनाता तामीर उठाता...
कायनात मुठी में लिए फिरता ...
बस रेत से खुद को बहलाता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला...
जो सच है वो हकीकत नहीं लगती...
जो हकीकत है उसे झूठा कहते हैं सब...
मौत तू झूठी है युही गुनगुनाता जाता...
जिंदगी का एक ये नन्हा बुलबुला..
भावार्थ
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