तुम हू-ब-हू मुझसे नज़र आते हो मेरे दोस्त ...
फिर क्यों ...
मुझे भावार्थ और तुमको आईना कहते है लोग...
कब तक युही वक्त जाया करोगे पपीहे ...
इस बार...
थार की तपिश वो इक बूँद भी पी लेगी...
सदियों को मुट्ठी में कैद कर के बैठा है वक़्त...
और तुम कहते हो..
ये वक़्त बस एक पल में गुज़र जाएगा...
जूनून-ए-इमा से न टकराना हुजूम...
तब भी और आज भी...
सरफरोशी को मुट्ठी भर लोग ने ही अंजाम दिया है...
साज जिनसे कितनी ही रूहें सुनी गयी...
जानते हो...
उन साजो में छुपी शक्लें किसी ने नहीं देखी.
बालिश्त भर खायिशों की जिद्दो-जहद इतनी है तुम्हारे लिए ...
सोचो कुछ थे...
जो सिकंदर बनने का खाब जी गए जिंदगी में...
भावार्थ