अधूरी रात को ये किसका इंतजार है...
तारों के शामियाने में सुबुकती रात...
अँधेरे को ओढ़े उजड़े पेड़ से सटी बैठी है...
शाम से रूठ कर आई है शायद...
चाँद आया भी मगर कुछ नहीं बोला ...
और ये सन्नाटा आज भी खामोश है...
कोई नहीं बतियाता उस रात से...
और एक दिन है, जिसे वो चाहती है...
चकाचौंध धुप से सजा दिन ...
जिसमें लोग गाते और गुनगुनाते हैं...
बात करते और कहकहे लगाते हैं ...
रात को मालूम है वो खूबसूरत नहीं है...
खिलखिलाते दिन की तरह ...
मगर वो अधूरी है दिन के बगैर...
आज वो खफा हूँ खुदा से ....
की कब तक रहेगी वो अधूरी...
दिन के बगैर , आखिर कब तक...
आखिर कब मिटेगी ये दूरी...
दिन और रात की दूरी...
और कब मिटेगा रात का अधूरापन...
...भावार्थ
1 comment:
Gd goin Ajay.. keep it up!!
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