तेज रफ़्तार में...
सपनो को लिए...
दूर तक फैली...
रेलगाड़ी जब निकली...
बच्चे पास के गाँव के...
उसके साथ साथ दौड़े...
जैसे छूना चाहते हों...
और लोहे की कोख में ...
हर एक मुसाफिर...
मंजिल का उसके जरिये ...
मानो उसे पाना चाहते हों...
ये किसकी नज़र लगी...
लोहे की टूटी कड़ी थी ...
कुछ ही पल में रफ़्तार ...
मौत बन कर खड़ी थी...
देखते ही देखते...
चीखे हवा में घुल गयी...
सपनो की पोटली ...
कच्ची नीद में खुल गयी...
हर एक सपना खो गया...
जीता जागता इंसान सो गया...
दूर तक फैली रात और ...
बुद्ध पूर्णिमा का पूरा चाँद ...
कितनी जिंदगियों में...
घोर अँधेरा कर गया...
बोद्ध बिक्षुओं की टोली ..
कुछ दूर कहती गुजरी...
बुद्धं शरणम् गच्छामि...
धम्मम शरणम् गच्छामि...
...भावार्थ
1 comment:
very touching!!
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