Monday, January 25, 2010

नाराजगी !!!

आज नाराज है सुखन ...
शेर भी मुह फुलाए बैठे हैं...
ग़ज़ल कौने मैं गुम सुम कड़ी है...
तीर सारे तरकश से बाहर आ बैठे हैं...

धुंए मैं उड़ रहे हैं अलफ़ाज़ ...
लफ़्ज़ों को जेहेन ने समझाया बहुत...
हर्फ़ खुदा की इनायत है...
यु जिद्दी को मैंने बहलाया बहुत...


मगर गुरूर-ए-सुखन कम न हुआ...
ख़ुद पे उसका नाज़ कम न हुआ...
लौट गयी कुछ लिखने की तलब...
कागज़ पे गुम फिर मेरा गम न हुआ...

भावार्थ

उलझी पहेली...

उसके सुलझे खाबो को लिए उलझी रात...
उलझे खाबो की उसकी सुलझी सी बात...
उसने लब्ज़ से न कही..
बात दिल मैं भी न रही ...
तिरछे नैन और उनपे कांपती पलकें...
कभी उठती कभी गिरती...
मगर जेहेन से उभरी बातों को ...
हौले हौले काज़ल मैं लिपटी सौगातों को...
मुझ तक भेजती रही...
मैं समझ गया कि...
सुलझी बात अब नहीं उलझेगी...
पहेली मोहब्बत कि फिर नहीं सुलझेगी...
कि कोई क्यों बेवफा होता है...

...भावार्थ

Friday, January 22, 2010

तू है तो फिर दर्द नहीं !!!

दर्द मेरी कोख मैं फिर उठा...
आंतो को चाकू सा चीरता...
मुझको मेरे अपनों से खींचता...
दर्द फिर उठा कोख में...
मौत पलकों तक आई...
होठो पे आ मुस्कुराई...
हथेली को छुआ...
पेट पे गुदगुदी की...
तलवो को मलती रही...
पगली कहीं की...
तेरे ख्याल जो पलकों में बसे थे...
होठो पे तेरी छुअन...
हथेली पे तेरी तकदीर की लकीरें...
पेट पे तेरी निशानी...
तलवो पे तुम्हारी शरारत ...
मिली पगली को ...
लौट गयी दर्द को ले कर...
तेरी मोहब्बत से हार के...
तेरी कशिश काफी थी...
मुझे जिन्दा रखे को...
दर्द का हौसला कहाँ इतना...
की मुझे तुझ से जुदा कर पाए...

...भावार्थ

दर्द !!!

दर्द अब आंसू बन नहीं बहता ...
दिल में कौने में जम रहा है....
कतरा कतरा दर्द का लिए...
हर पल जो साँसे धधकती है...
हो न हो एक दिन थम जाएँगी...
और लहू की तरह फट पड़ेगा...
दर्द दिल के कौने कौने से...
और रह जायेंगे आंसू आखों में...

...भावार्थ

Saturday, January 2, 2010

लोग !!!

जख्म की बोलियाँ लगाते लोग...
दर्द तराजू पे तोलते नज़र आते लोग...
आह को बाज़ार मैं ले जाते लोग...
कसक का मोल लगाते लोग...
गहरी चोट को बेचने जाते लोग...

इंसान कहलाने के काबिल नहीं...

भावर्थ

Friday, January 1, 2010

नए साल पे कुछ ख्याल !!!

अब्बा "ये" बूढा क्यों नहीं होता...
क्यों इसके गालो पे झुरियां नहीं पड़ती...
क्यों हर नए साल "वक़्त" का जश्न मनता है...

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आज गाँव की तरफ जाया जाये....
खेतो को देखा, खलियानों को निहारा जाए...
नए साल का जश्न हुजूम से दूर मनाया जाए...

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आबरू फिर उड़ेगी, मज़हब लहू बिखेरेगा...
भट्टियों मैं लोग जलेंगे, बारूद उछलेगा...
नया क्या होगा इस बरस...

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देर तक लोग नाचे, देर तक धूम मची...
देर तक बच्चा रोया, देर तक माँ जगी...
एक दीवार के इस तरफ एक दीवार के उस तरफ...

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वक़्त के समन्दर मैं कोई साहिल नहीं...
गए कल से आने वाले कल तक देख लिया...
बुलबुले आते हैं हर साल, और लोग जश्न मानते नज़र आते हैं...

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नए साल के बरगद पे बारह डालियाँ हैं...
हर डाल पे ३० या ३१ फूल लगे हैं...
फूल गिरते रहते हैं, और बरस बीत जाता है...

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मशगूल जिंदगी से कुछ वक़्त निकला जाए...
पडोसी का हाल चाल पुछा जाए...
पुरानी तस्वीरों को निहारा जाए...
गमलों मैं थोडा पानी दिया जाए...
बच्चो को साथ खेल खेला जाए...
नए साल का जहन मनाया जाए....

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भावार्थ