Friday, November 27, 2009

धोखा !!!

धोखे को लोग आज कल ख़ुद का हुनर कहते हैं...
हाथ का खेल कभी तो कभी खेल-ऐ-नज़र कहते हैं...

रिश्ते में पहली गाँठ बेवफाई की जो है ...
इस धोखे को लोग बीती हवा का असर कहते हैं...

बात बात में बात बदल जाती है लोगों की...
अल्फाजो के जाल बुनने को वो लश्कर कहते हैं...

हंस के मिलते हैं गले से जो दोस्त बन कर...
बाजुओं में छुपे उसी धोखे को अक्सर खंजर कहते हैं...

आँखों में क्या है और क्या है उनकी जुबान पे...
दिल में फरेब पालने को लोग ख़ुद का हुनर कहते हैं..

...भावार्थ

Wednesday, November 25, 2009

पल !!!

राहें हैं बादल, चांदनी है मंजिल...
सर्द सी हवा है और तुम हमसफ़र...

हैं बेचैन बाहें , हैं मदहोश निगाहें...
खामोश लब है थमा सा ये मंजर...

सुर्ख लाल जोड़े , जो तुझको हैं ओढ़े...
हया की मूरत को न लगे ये नज़र...

..भावार्थ

Monday, November 23, 2009

गुहार !!!

इस रास्ते को मेरे फूंक से उड़ा जिंदगी...
या फ़िर मंजिल की झलक दिखा जिंदगी...

तमन्नाओ के भवर गहराने लगे हैं...
समन्दर के किनारे अब दिखा जिंदगी...

रात ने परदे में है छुपा रखी चांदनी...
इक नज़र अंधेरे को इसकी दिखा जिंदगी...

गिनने लगा हूँ आसमा के तारे हर रोज...
नींद को आँखों की राह अब दिखा जिंदगी...

याद दफनाई है जमीं के नीचे मैंने उसकी...
अब पत्थर हुई आँखों को न रुला जिंदगी...

आज रात भर जलाई है उसकी यादे मैंने...
दर्द उसका सर्द दिल से मेरे मिटा जिंदगी...

अब हकीकत आईने में है या परछाई है...
हकीकत की अब हकीकत दिखा जिंदगी...

जीना भी एक सदा है या बस एक जरूरत है ...
जरूरत को न ऐसी जरूरत बना जिंदगी...

दांव पे दांव जो लगाया हर बार हारा हूँ ...
मुकद्दर को मेरे जुआरी न बना जिंदगी...

दर्द ने जिंदगी बख्शी है या जिंदगी ने दर्द...
इश्क उसका जिंदगी से अब मिटा जिंदगी...

मुझे जहर दे या दे फ़िर ख़ुदकुशी की सजा...
सजा-ऐ-मोहब्बत न कर अता जिंदगी...

इन रास्तों को मेरे फूंक से उड़ा जिंदगी...
या फ़िर मंजिल की झलक दिखा जिंदगी....

....भावार्थ !!!

Saturday, November 14, 2009

आमंत्रण !!!

शुभ लग्न के उस शुभ पल में...
मधुर हवा के उस आँचल में...

है आप सभी का आमंत्रण !!!

रोरी, पुष्प , दीप के अर्पण में ...
पवित्र मिलन के इस दर्पण में ...

है आप सभी का आमंत्रण !!!





चहुँ शंख बजे और घुला हो इत्र ...
हो शुभ महूर्त तो शुभ हो सर्वत्र ...

है आप सभी का आमंत्रण !!!

अग्नि साक्षी मन्त्र के उच्चारण में ...
इष्ट,देवी देवताओं के आवाहन में ...

है आप सभी का आमंत्रण !!!





सन संवत २०६६,अगहन मास में...
अखंड द्वादशी, आयोजन ख़ास में...

है आप सभी का आमंत्रण !!!

भावार्थ !!!

रेगिस्ताँ !!!

रेगिस्ताँ को कोई पयाम नहीं देता...
तड़प को उसकी अंजाम नहीं देता...

दूर तक सुकूत है दूर तक तन्हाई...
लौटकर मुझे कोई आवाज़ नहीं देता...

रास्ते बनते है तो कुछ एक पल को...
पैरों के निशाँ को कोई नाम नहीं देता...

हवा टटोलती रहती है रेत के सीने को...
बावरी को मय का कोई जाम नहीं देता...

रेगिस्ताँ को कोई पयाम नहीं देता...
तड़प को उसकी अंजाम नहीं देता...

...भावार्थ

Friday, November 13, 2009

मेरा कमरा !!!

मेरे कमरे में यु तो कुछ नहीं है...
मगर फ़िर भी एक दुनिया है...
जो मुझे जन्नत सी लगती है...

तस्वीर !!!
"कार्ल मार्क्स" की तस्वीर ...
जो मुझे ख़ुद से ज्यादा औरो के लिए...
जीने का सबक देती है...
आज कल कोई नहीं पहचानता ..
इस सफ़ेद दाढ़ी वाले को...



चाय की प्याली !!!
एक चाय का कप और प्लेट...
चीनी मिटटी के हैं, मगर चीनी नहीं है...
हर बार होठ तक चाय आती है तो ...
ये जायका बढ़ा देते हैं...



किताबें !!!
इस 'किताब की दीवार' की किताबें ...
एक दूसरे को कन्धा देती हुई लगती हैं...
कुछ पढ़ी, कुछ आधी पढ़ी, कुछ अनपढ़ी ..
सबसे दोस्ती की थी मैंने जब लाया था उनको...

एक पलंग !!!
एक तकिया और सफ़ेद चादर ...
पलंग के ओढ़ने को काफ़ी हैं ...
इसपे दरी बिछी है जिसके फटे होने के निशाँ...
चादर में छिपे रहते हैं ...

शतरंज !!!
चौसठ खाने, आधे सफ़ेद आधे काले...
मेरे दोस्तों के कह-कहे यही चुप होते हैं ...
महाभारत के सारे हुनर...
चाणक्य की सारे चालें सब जीने लगती हैं...
जेहेन को चलते देखा है मैंने इस काठ पे...

डायरी !!!
ख्यालो के उबाल को निब में भर के...
पन्नो पे लाना अजीब सुकून देता है...
कुछ पल को सही ये डायरी मेरी हमसफ़र है...
साँस लेने के बाद शायद यही सबसे करीब है मेरे...


तन्हाई !!!
कार्ल मार्क्स के ख्यालो को तोलने को ...
चाय की प्याली से चुस्किया लेने को ...
किताबो में भरे ख्यालो को टटोलने को...
पलंग पे थकान के बोझ को छोड़ने को...
शतरंज की चालें खेलने को...
डायरी में सोच की स्याही उडेलने को...
शायद सब से जरूरी है...ये तन्हाई

मैं और मेरी तन्हाई बनाते हैं उस जन्नत को...
मेरे कमरे की चार दीवारी में...

..भावार्थ

Tuesday, November 10, 2009

सिर्फ़ तेरे लिए !!!

तमन्नाओं के बादल...
जो जेहेन में उमडे मेरे ...
मैंने थामे रखे है ...

मोहबत के हर्फ़ ...
जो मैंने उकेरे नहीं कभी ...
पन्नो में छुपा रखे हैं ...

बे-इन्तेआह इश्क की तलब ...
जो मेरे आगोश को हुई...
मैंने दिल में दबा रखी है...

इज़हार के अल्फाज़ ...
जो जुबान कह सकी...
मैंने लबो में समां रखे हैं...

सिर्फ़ तेरे लिए...
मैंने मोहब्बत महफूज़ रखी ...
सिर्फ़ तेरे लिए...

तू जिंदगी बन के आए ...
जी सकूं सभी एहसासों को...

...भावार्थ

Sunday, November 8, 2009

चेहरा



याद है
एक बार मेरे
दोनों हाथ पकड़ कर
तुमने
अपने चेहरे पे
रख लिए थे
बस
उसी वक़्त मैंने
चुरा लिया था
तुम्हे
अब तक
इन्ही हाथों में
संभाल
रखा है
जब भी
खुश होती हूँ
उदास होती हूँ
मैं
यही हाथ
अपने चेहरे पे रख लेती हूँ
तेरे चेहरे
से
अपना चेहरा
ढक लेती हूँ