पीली मिटटी में कपास उगाते लोग...
शहरो में गावं सी आस लगाते लोग...
दो रूह बनाती मोहब्बत की दुनिया को...
उसमें भी क्या क्या नुक्स जताते लोग...
खफा है चंद अपनोंसे भरी इस दुनिया से ...
खाली भीड़ की तरफ़ हाथ बढाते लोग...
उनकी लाज शर्म को भूल चुके है सब...
मिटटी से बस अंधी प्यास बुझाते लोग...
पीली मिटटी में कपास उगाते लोग...
शहरो में गावं से आस लगाते लोग...
...भावार्थ
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