Wednesday, September 2, 2009

धुआं नहीं उठा !!!

कई दिन गए, हफ्ते गए...
रातें गई शामे गई...
मगर ये धुआं नहीं उठा...
ऐसा नहीं है की आग बुझ गई है...
ऐसा भी नहीं है की ख्याल की आंच नहीं है...
जेहेन में बेचैन सवालों का सेलाब नहीं है...
ये जो अल्फाजो के उपले जो गीले से थे ...
थोड़ा वक्त ले रहे थे सुलगने में..
मैंने उनमें एहसास का तेल छिड़क दिया है...
अब देखना कैसे धधकते हैं ये ...
और कैसे उठता है धुआं...
मेरे दिल के कौने से कोई नज़्म बन कर...

भावर्थ

2 comments:

Meenu Khare said...

अच्छा लिखते हैं आप.

Ajay Kumar Singh said...

thnx meenu ji....But u r too good, inspiration for many