बादलो के झरोके से सूरज ताक रहा ऐसे।
धरती का आँचल छुना चाह रहा हो जैसे।
ये धुप बिखरने की जिद करने लगी है।
खेल खेलने को मन मचल रहा हो जैसे।
हवा उड़ उड़ के बादलो को मना रही इस तरह।
की ख़ुद धुप के साथ बह जन चाहती हो जैसे।
आसमान का घर रौनक से खिल खिला रहा है।
किसी जश्न को वो खुलकर मना रहा हो जैसे।
बादलो के झरोके से सूरज ताक रहा ऐसे।
धरती का आँचल छुना चाह रहा हो जैसे।
भावार्थ...
No comments:
Post a Comment