डरा तूफ़ान जब भी आता है।
थकी हवा सिसक पड़ती है।
धूल घबरा के बिछ जाती है।
डालियाँ युही टूट पड़ती हैं।
डरा तूफ़ान जब भी आता है।
रास्ते अपने निशाँ खोजते हैं।
बस्तियां युही उजाड़ जाती है।
माकन अपना पता खोजते हैं।
डरा तूफ़ान जब भी आता है।
हस्तियाँ कहीं मिट सी जाती हैं।
रोनके विधवा हो कर रोती हैं।
मस्तियां कहीं डूब सी जाती है।
डरा तूफ़ान जब भी आता है।
भावार्थ...
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