गुलिस्तान का क्या अंजाम है।
दो रुई डाल के चलता हूँ में तो।
आख़िर जीना इसी का नाम है।
मेरे गाल पे जब कोई एक रखता है।
जैसे को तैसा का क्या पैगाम है।
आख़िर जीना इसी का नाम है।
कौन है पापी यहाँ कोई नहीं।
हर पापी यहाँ तो भजता राम है।
ढोंगी दुनिया सारी है बस ऐसी।
आख़िर जीना इसी का नाम है।
अपने सी ही भरा हर इंसान है।
खाओ पियो और सो जाओ।
आख़िर जीना इसी का नाम है।
भावर्थ...