Saturday, October 17, 2015

अँधेरा पुकारे उजारे को

अँधेरा पुकारे उजारे को
बूँद निहारे किनारे को

धधक रहा हर इक पल
बुझादो वक़्त के पारे को

भंवर है ये साँसों का
थमने को ढूढे सहारे को

तू ही खुदा है जान ले तू
क्यूँ तके चाँद और तारे को


भावार्थ
१७/१०/२०१५

















No comments: