Saturday, August 16, 2014

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गयी 
दोनों को एक नज़र में रज़ामंद कर गयी 
शक हो गया है सीना खुशा लज़्ज़त-ए- फरग 
तकलीफ-ए-पर्दादारी -ए- जख्म-ए-जिगर गयी  
वो वादा-ए- शबनम की सरमस्तियां कहाँ 
उठिए बस अब के लज़्ज़त-ए खाब-ए-शहर गयी 
उड़ती फिरे है ख़ाक मेरी कु-ए-यार में 
बारे आब आई हवा हवस-ए-बल ओ पर गयी 
देखो तो दिल फरेबी-ए-अंदाज़-ए- नक्श-ए- पा 
मौज-ए-खैराम-ए- यार भी क्या गुल कुतर गयी 

मिर्ज़ा ग़ालिब 

No comments: