वो बच्चा अँधेरे से झांकता सा है
हर एक रिश्ते से काँपता सा है
मासूमियत अभी पनपी भी नहीं
दर्द के आभास को भांपता सा है
हर शख्स उसे सहेली सा लगे
हर लफ्ज़ उसे पहेली सा लगे
नहीं जानती हैवानियत क्या है
सितम भी उसे अठ्केली सा लगे
जो भी बड़े करते ऐसा हैं क्यों करते हैं
बहला के फुसला के हमें क्यों करते हैं
खूबसूरत है जिंदगी माँ कहती है
उसे ये ऐसा करके गन्दा क्यों करते हैं
भावार्थ
हर एक रिश्ते से काँपता सा है
मासूमियत अभी पनपी भी नहीं
दर्द के आभास को भांपता सा है
हर शख्स उसे सहेली सा लगे
हर लफ्ज़ उसे पहेली सा लगे
नहीं जानती हैवानियत क्या है
सितम भी उसे अठ्केली सा लगे
जो भी बड़े करते ऐसा हैं क्यों करते हैं
बहला के फुसला के हमें क्यों करते हैं
खूबसूरत है जिंदगी माँ कहती है
उसे ये ऐसा करके गन्दा क्यों करते हैं
भावार्थ
No comments:
Post a Comment