Friday, September 20, 2013

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए
दिया दिल का बुझाते और जलाते चले गए

हो गयी  वफ़ा से बसर रात रिश्तों की
ख़ुशी लबो पे गम आँखों में छुपाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हर एक आह मेरी गूंजी मगर तन्हाई में
हमसफ़र को  दर्द के साए से बचाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

मेरे अपनों का वजूद भी साए सा निकला
अँधेरे में एक एक कर छोड़ कर जाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हम को तो बस पाक वफ़ा की तलाश थी
अजनबी को इसी वास्ते हमसफ़र बनाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हर शख्श बस इसी नूर-इ-इलाही से रोशन है
यही समझ के सबको गले  लगाते  चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

मुझे नहीं मालूम क्या है मजहबो का सबब
बस खुद को हर किसी के काम का बनाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

भावार्थ

Sunday, September 8, 2013

ये सांकर सी है माया



ये सांकर सी है माया
खेल समझ मुझको आया
अजान जनी मूढ़ता
मूढ़ जना अहम् ढूढता
अहम् मारे दुःख-सुख उपजे
उनसे फिर कर्म है उपजे
कर्म से फिर मोह बना
मोह से ये माया जाल बुना
ये सांकर सी है माया
खेल समझ मुझको आया

~ भावार्थ ~
"कृतज्ञ" स्वामी शिवानन्द"

सांकर : Chain
अजान : Ignorance
मूढ़ता : Inability to discriminate
अहम्: Egoism



दर्द के आभास को भांपता सा है

वो बच्चा अँधेरे से झांकता सा है
हर एक  रिश्ते से काँपता सा है
मासूमियत अभी पनपी भी नहीं
दर्द के आभास को भांपता सा है

हर शख्स उसे सहेली सा लगे
हर लफ्ज़ उसे पहेली सा लगे
नहीं जानती  हैवानियत क्या है
सितम भी उसे अठ्केली सा लगे

जो भी बड़े करते ऐसा हैं क्यों करते हैं
बहला के फुसला के हमें क्यों करते हैं
खूबसूरत है जिंदगी माँ कहती है
उसे ये ऐसा करके गन्दा क्यों करते हैं

भावार्थ

Sunday, September 1, 2013

ओ कान्हा !!!

मेरा करदे बेडा पार ओ कान्हा
मुझे भाये नहीं संसार ओ कान्हा

पांच भूत से बनी ये काया
इस काया में बसी है माया
माया ने ये जाल बिछाया

मुझे माया से कर दे पार ओ कान्हा
मेरा करदे बेडा पार ओ कान्हा

जित देखूं तित तुझको पाऊँ
हिरदे बिच में तुझको बसाऊँ
तुझको बिसरूं तो मर जाऊं

ऐसा करदे तू उद्धार ओ कन्हा
मुझे भाये नहीं संसार ओ कान्हा

एक जोत से सब दीपक जलते
एक नाम से सब जीव है पलते
एक सांचे में सब तन ये ढलते

मुझे खुद में कर इकसार ओ कान्हा
मुझे भाये नहीं संसार ओ कान्हा

अहम् के मारे क्रोध है उपजा
क्रोध के मारे विष है उपजा
विष के मारे दैत्य है उपजा

इस दैत्य को दे तू मार ओ कान्हा
मुझे भाये नहीं संसार ओ कान्हा

मेरा करदे बेडा पार ओ कान्हा
मुझे भाये नहीं संसार ओ कान्हा

भावार्थ 
२८ अगस्त २०१३ , जन्माष्टमी, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र ( जीवन परिवर्तन की गुहार)