अधूरी रात को ये किसका इंतजार है...
तारों के शामियाने में सुबुकती रात...
अँधेरे को ओढ़े उजड़े पेड़ से सटी बैठी है...
शाम से रूठ कर आई है शायद...
चाँद आया भी मगर कुछ नहीं बोला ...
और ये सन्नाटा आज भी खामोश है...
कोई नहीं बतियाता उस रात से...
और एक दिन है, जिसे वो चाहती है...
चकाचौंध धुप से सजा दिन ...
जिसमें लोग गाते और गुनगुनाते हैं...
बात करते और कहकहे लगाते हैं ...
रात को मालूम है वो खूबसूरत नहीं है...
खिलखिलाते दिन की तरह ...
मगर वो अधूरी है दिन के बगैर...
आज वो खफा हूँ खुदा से ....
की कब तक रहेगी वो अधूरी...
दिन के बगैर , आखिर कब तक...
आखिर कब मिटेगी ये दूरी...
दिन और रात की दूरी...
और कब मिटेगा रात का अधूरापन...
...भावार्थ
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, October 30, 2010
Tuesday, October 26, 2010
बुद्धू जी के लिए !!!
चाँद से खफा हूँ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू...
होठ को प्यास है...
उसके आने की आस है...
वोह जो तोफहा ख़ास है...
न जाने कहाँ जा के बैठा है बुद्धू...
रिवाज़ नहीं निभा रही...
प्यार निभा रही हूँ...
चाँद ही तो गवाह है ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू ...
रिश्तो की डोर को सँभालते...
उनके चेहरे में दुनिया तलाशते...
उम्र देनी है अपने प्यार को...
लो आ गया बुद्धू...
चलो बुद्धू जी अब पानी पिला दो...
अपने हाथो से..
...भावार्थ
करवा चौथ ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू...
होठ को प्यास है...
उसके आने की आस है...
वोह जो तोफहा ख़ास है...
न जाने कहाँ जा के बैठा है बुद्धू...
रिवाज़ नहीं निभा रही...
प्यार निभा रही हूँ...
चाँद ही तो गवाह है ...
न जाने कहाँ जा छुप के बैठा है बुद्धू ...
रिश्तो की डोर को सँभालते...
उनके चेहरे में दुनिया तलाशते...
उम्र देनी है अपने प्यार को...
लो आ गया बुद्धू...
चलो बुद्धू जी अब पानी पिला दो...
अपने हाथो से..
...भावार्थ
करवा चौथ ...
Saturday, October 23, 2010
तुम से जुदा हुआ !!!
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
संग दुनिया ने जो मेरी मोहब्बत पे फैंके...
हर एक संग वो आज सूरत-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
पाक रिश्तो को नहीं मिलते पाक अंजाम...
आज दुनिया में अँधा वो नूर-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
तेरे दर की हर राह में मोहब्बत देखी मैंने...
बोसा बोसा कूचे का तेरे खौफ शुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
...भावार्थ
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
संग दुनिया ने जो मेरी मोहब्बत पे फैंके...
हर एक संग वो आज सूरत-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
पाक रिश्तो को नहीं मिलते पाक अंजाम...
आज दुनिया में अँधा वो नूर-ए-खुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
तेरे दर की हर राह में मोहब्बत देखी मैंने...
बोसा बोसा कूचे का तेरे खौफ शुदा हुआ...
इश्क में जबसे मैं तुझ से जुदा हुआ ...
लोग कहते हैं तबसे मैं गुमशुदा हुआ ...
...भावार्थ
Friday, October 22, 2010
जिंदगी की भीड़ में ...
बैठा हूँ तन्हाई ओढ़े...
शोर के इस दौर में ...
बैठा हूँ ख़ामोशी ओढ़े...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
बढ़ते हैं उनके कदम...
और मैं हूँ यहाँ थमा...
मौज मैं है हर कोई ...
आँख मेरी है नम जरा ...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
टूट कर हैं वो जुड़ रहे...
मैं हूँ यहाँ बिखरा पड़ा...
चाहते उनको मिल रहीं...
और गम से मैं हूँ भरा...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
...भावार्थ
बैठा हूँ तन्हाई ओढ़े...
शोर के इस दौर में ...
बैठा हूँ ख़ामोशी ओढ़े...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
बढ़ते हैं उनके कदम...
और मैं हूँ यहाँ थमा...
मौज मैं है हर कोई ...
आँख मेरी है नम जरा ...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
टूट कर हैं वो जुड़ रहे...
मैं हूँ यहाँ बिखरा पड़ा...
चाहते उनको मिल रहीं...
और गम से मैं हूँ भरा...
तुम चली आओ...2
तुम चली आओ...2
...भावार्थ
Tuesday, October 19, 2010
सूखी बरसात !!!
समंदर ने रेत बोई मगर कुछ नहीं उगा...
सीप बिखर गए, गोल बत्थर रह गए...
किनारे पे जहाँ कभी हरियाली थी...
समंदर की जिद से बंजर बन के रह गयी...
रेगिस्तान देखता हूँ तो सोचता हूँ...
की समन्दर किन्तना जिद्दी था...
सहारा से लेकर थार तक...
...भावार्थ
सीप बिखर गए, गोल बत्थर रह गए...
किनारे पे जहाँ कभी हरियाली थी...
समंदर की जिद से बंजर बन के रह गयी...
रेगिस्तान देखता हूँ तो सोचता हूँ...
की समन्दर किन्तना जिद्दी था...
सहारा से लेकर थार तक...
...भावार्थ
Wednesday, October 13, 2010
आँसू !!!
कितनी गहरी है ये खाई जो उस टीले पे बनी है...
सालों से लोगों को पूजते देखा है उसे...
कहते हैं उसमें आग पानी सी बहती है...
कई दफहा नामो निशाँ मिटा चुकी है वो ...
कभी लावा बन कर तो कभी आँसू बन कर...
...भावार्थ
सालों से लोगों को पूजते देखा है उसे...
कहते हैं उसमें आग पानी सी बहती है...
कई दफहा नामो निशाँ मिटा चुकी है वो ...
कभी लावा बन कर तो कभी आँसू बन कर...
...भावार्थ
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