दर्द मिन्नत_काश-ऐ-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ
जमा'अ करते हो क्यों रकीबों का ?
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहाँ किस्मत आजमाने जायें ?
तू ही जब खंजर आजमा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लैब ! की रकीब
गालियाँ खाके बे_मज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ !
क्या वोह नमरूद की खुदाई थी
बंदगी में तेरा भला न हुआ
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक तो ये है के हक अदा न हुआ
ज़ख्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया रावणः हुआ
रहज़नी है की दिल_सितानी है ?
लेके दिल, दिल_सीतां रावणः हुआ
कुच्छ तो पढिये की लोग कहते हैं
"आज 'ग़लिब' घज़ल्सरा न हुआ"
...मिर्जा गालिब
1 comment:
भाई आपका ब्लॉग बहुत सुन्दर है, इतना प्रयास सराहनीय है...
लेकिन स्पेलिंग की गलतियाँ बहुत हैं... कृपया गजलों, शेरों को सही सही लिखा/टाइप किया करें
इस ग़ज़ल में बहुत ही ज्यादा गलती है... पाठकों के साथ धोखा होगा और भरमाने वाली बात भी.
दो उदहारण...
बोरिया = वीराना
घज़ल्सरा = ग़ज़ल सरां
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