आज जब दुपहरी हलकी सी भीग गई...
तो हौले से शाम के आगोश में आ गई...
सिली सिली सी हवा ...
मद्धम मद्धम सी सोंधी खुशबू ...
पीपल के पत्तो पे मोती सी बूँदें...
उसने कभी नहीं देखी थी...
धूल दूर दूर तक बोझिल थी...
बच्चो की टोली जो उससे डरती सी थी...
किलकारियां मारती हुई आ पहुँची...
देखते ही देखते बाँझ दुपहरी...
हरी भरी सी भादों की शाम बन गई...
भावार्थ...
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