एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Saturday, March 28, 2009
वाकया !!!
कैसे ये रुत बदली , फिजा बदली... जो मद्धम हो चुकी थी वो हवा बदली... तरसते पपीहे की चाह बदली... निगोड़े भंवरे की निगाह बदली... गुनगुनाने वाली की राह बदली... रिश्तों के गुलज़ार में सुना है एक और नया फूल खिला है ...
No comments:
Post a Comment