Friday, September 20, 2013

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए
दिया दिल का बुझाते और जलाते चले गए

हो गयी  वफ़ा से बसर रात रिश्तों की
ख़ुशी लबो पे गम आँखों में छुपाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हर एक आह मेरी गूंजी मगर तन्हाई में
हमसफ़र को  दर्द के साए से बचाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

मेरे अपनों का वजूद भी साए सा निकला
अँधेरे में एक एक कर छोड़ कर जाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हम को तो बस पाक वफ़ा की तलाश थी
अजनबी को इसी वास्ते हमसफ़र बनाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

हर शख्श बस इसी नूर-इ-इलाही से रोशन है
यही समझ के सबको गले  लगाते  चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

मुझे नहीं मालूम क्या है मजहबो का सबब
बस खुद को हर किसी के काम का बनाते चले गए

जिंदगी के फैसलों को हम निभाते चले गए

भावार्थ

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