Wednesday, October 13, 2010

आँसू !!!

कितनी गहरी है ये खाई जो उस टीले पे बनी है...
सालों से लोगों को पूजते देखा है उसे...
कहते हैं उसमें आग पानी सी बहती है...
कई दफहा नामो निशाँ मिटा चुकी है वो ...
कभी लावा बन कर तो कभी आँसू बन कर...

...भावार्थ

1 comment:

संजय भास्‍कर said...

बहुत से गहरे एहसास लिए है आपकी रचना ...