Saturday, September 10, 2016

लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती !!!

लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

बिछड़ गए है हम तो सुखन से
गज़ल से अब बात नहीं होती
शोर से भरी है शहर की गलियां  
लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

बिछड़ गए है हम तो सुखन से
लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

अब कोई दोहा हमें राह बतलाये नहीं
क्या है तहज़ीब हमें ये समझाए नहीं
चले आये हैं गावँ को छोड़कर जो 
बुजर्गों की सलाह अब साथ नहीं होती

बिछड़ गए है हम तो सुखन से
लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

इश्क़ अब जिस्म पे है सिमटा चुका
वो जूनून-ए -मोहब्बत भी  मिट चूका
खोखले रिश्ते को ढोती है जिंदगी
वो अंदाज़ हया श्रृंगार की बात नहीं होती

बिछड़ गए है हम तो सुखन से
लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

अब कोई फ़कीर गुनगुनाये नहीं
पाक रूह अब नज़र आये नहीं
बहरूपिये अब  बन बैठे हैं खुदा
बैचैन हैं दिन सुकून की रात नहीं होती

बिछड़ गए है हम तो सुखन से
लफ़्ज़ों से अब मुलाक़ात नहीं होती

भावार्थ
११/०९/२०१६ 

2 comments:

Unknown said...

Life is a drama Queen..
Nice every word has deep truth

Ratna

Unknown said...
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