ये जब्र भी देखा है तारीख की नज़रों ने
लम्हों ने खता की थी सदियों ने सजा पाई
शिव कुमार "बटालवी"
एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....