टटोलिये मत इस कलजुग के दरवेशों को
हर एक यहाँ बादशाहत का खाब रखता है
सौ टका सोना भी यहाँ खरा ना निकले
हर सुनहरा जर्रा मिटटी बेहिसाब रखता है
यहाँ पे अंधे नूर और गूंगे जुबान रखते हैं
आम आदमी भी हुनर लाज़वाब रखता है
लौट जाओ सतयुग की आस रखने वालो
सच भी यहाँ झूठ का आफताब रखता है
पागल को ही यहाँ बस खुदा मिला करते हैं
अक्ल वाला तो पत्थर का हिसाब रखता है
भावार्थ
३१/१२/२०१५
हर एक यहाँ बादशाहत का खाब रखता है
सौ टका सोना भी यहाँ खरा ना निकले
हर सुनहरा जर्रा मिटटी बेहिसाब रखता है
यहाँ पे अंधे नूर और गूंगे जुबान रखते हैं
आम आदमी भी हुनर लाज़वाब रखता है
लौट जाओ सतयुग की आस रखने वालो
सच भी यहाँ झूठ का आफताब रखता है
पागल को ही यहाँ बस खुदा मिला करते हैं
अक्ल वाला तो पत्थर का हिसाब रखता है
भावार्थ
३१/१२/२०१५
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