Friday, July 24, 2015

बस यु ही बेवजह

हर चीज़ करने की एक  वजह  थी
शायद इसी से थक कर 
सोचा कुछ तो किया जाए
बस यु ही बेवजह

न मंजिल का ख्याल
न रास्ते की  परवाह
सुबह मैं  निकल गया  घर से
बस यु ही बेवजह

अपने दर्द को कुछ पल को भुला
अजनबी  को अपनेपन  से देखता
मैंने उसके दर्द को अपना लिया
बस यु ही बेवजह

स्कूल के बस्ते का बोझ ढोते
नन्हे  बचपन के साथ मैं
कुछ पल को खिलखिला लिया
बस यु ही बेवजह

जो अपनी  भूख के खातिर  था
मेरे पास जो भी  थोड़ा सा
मैंने एक बेजुबाँ को खिला दिया
बस यु ही बेवजह

किसी ने मन्नत मांगी  मजार पे
तो किसी ने संग से जन्नत चाही 
मैंने एक  बुजुर्ग के आगे सर को झुका दिया
बस यु ही बेवजह

हकीकत ये है जिंदगी की 'भावार्थ'
थक जाओगे जो किसी वजह से जीओगे
गर पानी  है उमंग तो जियो
बस यु ही बेवजह


भावार्थ
२५/०७/२०१५




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