तेरी बाहों में सिमटा मेरा
हर लम्हा गुज़र गया
रह गया बस तेरा अक्स निगाहों में
उस मंजर पे जहाँ साहिल
समंदर से जा मिले
मिट गए तेर पैरों के निशाँ रेत की राहों में
मेरी सुबह में न तेरी बातें रहीं
न वो रातों में तेरा सुरूर
मगर बिखरा है तेरा रंग बाकी इन हवाओं में
मेरी साँसे कहें कि तू है यहीं
और सब कहते हैं कि तू अब न रही
है तेरा वजूद अब भी मेरे दिल की आहों में
भावार्थ
हर लम्हा गुज़र गया
रह गया बस तेरा अक्स निगाहों में
उस मंजर पे जहाँ साहिल
समंदर से जा मिले
मिट गए तेर पैरों के निशाँ रेत की राहों में
मेरी सुबह में न तेरी बातें रहीं
न वो रातों में तेरा सुरूर
मगर बिखरा है तेरा रंग बाकी इन हवाओं में
मेरी साँसे कहें कि तू है यहीं
और सब कहते हैं कि तू अब न रही
है तेरा वजूद अब भी मेरे दिल की आहों में
भावार्थ
1 comment:
भावार्थ जी आप आपकी ये रचना बहुत ही अच्छी है आपकी इस रचना में बिछड़ते हुए प्रेम को एक बहुत ही खूबसूरत तरीके से रेखांकित किया है जो की बहुत ही उत्तम है आप अपनी रचनाओं को अब शब्द्नगरी पर भी प्रकाशित कर सकते हैं, वहां पर भी
आहों के सिवा
जैसे कई प्रकार के लेख उपलब्ध हैं ........
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