है एक समंदर बाहर जो
है एक समंदर भीतर भी
मारा फिरे है भीड़ में तू
करता फिरे है आडम्बर
मार के खुद के कोड़े तू
तू ढूढ़ रहा है पैगम्बर
है एक पैगम्बर बाहर जो
है एक पैगम्बर भीतर भी
है एक समंदर बाहर जो.…
है एक समंदर भीतर भी.…
कैसे सम्भालूँ मैं खुद को
पल पल भवर उमड़ते हैं
जितना संभालू इस दिल को
उतने ही बवंडर बढ़ते हैं
है एक बवंडर बाहर जो
है एक बवंडर भीतर भी
है एक समंदर बाहर जो.…
है एक समंदर भीतर भी....
जाकर मक्का मदीना तू
शैतान पे पत्थर मारे है
शैतान है जो तेरे भीतर
हर रोज तू उससे हारे है
है एक मंथन ऐसा बाहर जो
है एक मंथन वैसा भीतर भी
है एक समंदर बाहर जो.…
है एक समंदर भीतर भी.…
भावार्थ
४ जनवरी २०१५
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं
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