जहाँ में रौशनी जिससे तपिश भी उसी से है
बे-इन्तहा ख़ुशी जिससे खलिश भी उसी से है
अजीब सी है मोहब्बत की दास्ताँ सदियों से
बेवफाई भी उसी से और कशिश भी उसी से है
भावार्थ
बे-इन्तहा ख़ुशी जिससे खलिश भी उसी से है
अजीब सी है मोहब्बत की दास्ताँ सदियों से
बेवफाई भी उसी से और कशिश भी उसी से है
भावार्थ
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