हम झुलस चुके हैं इतना कि आह नहीं है
इस दरिआ से उबरने की अब राह नहीं है
होंसले कांच से बिखर चुके है इसकदर
कुछ कदम पर है मंजिल मगर चाह नहीं है
जहर जो हलक तक है उसके असर से बच
इस टोटके, काले धागे में बंधी नज़र से बच
तू जिस राह पे निकला है वो सच की है
नामुरादों के इरादों और झूठ के कहर से बच
भावार्थ
इस दरिआ से उबरने की अब राह नहीं है
होंसले कांच से बिखर चुके है इसकदर
कुछ कदम पर है मंजिल मगर चाह नहीं है
जहर जो हलक तक है उसके असर से बच
इस टोटके, काले धागे में बंधी नज़र से बच
तू जिस राह पे निकला है वो सच की है
नामुरादों के इरादों और झूठ के कहर से बच
भावार्थ
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