मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
मत घूरो मुझे
झाकने को भीतर मेरे कुछ नहीं है
जो है वो तेरी कल्पना है
एक सिलसिला है तेरे ख्यालों का
एक घोंसला जो तूने बुना है
मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
आंखों से वीभत्स क्यों
हो तुम ओ अजनबी
सिरहन सी दौड़ जाती है
उस नज़र से देखते हो कभी
मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
बड़ा अजीब सा लगता है
मत घूरो मुझे
झाकने को भीतर मेरे कुछ नहीं है
जो है वो तेरी कल्पना है
एक सिलसिला है तेरे ख्यालों का
एक घोंसला जो तूने बुना है
मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
आंखों से वीभत्स क्यों
हो तुम ओ अजनबी
सिरहन सी दौड़ जाती है
उस नज़र से देखते हो कभी
मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
~ भावार्थ ~
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