Tuesday, December 24, 2013

अजनबी हूँ इस अजनबी शहर में

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में
तलाश अपनेपन कि यहाँ  जारी है

होश को होश नहीं मय के आगोश में
ख़तम न होने वाली ये बेकरारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

हर रात सी लेता हूँ मैं चाक दिल के
सुबह फिर चोट खाने की  तैयारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

मेरा वजूद तो  बंजारों सा है
फिर किसी और मकाम की बारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

रखना पड़ता है निवालों का हिसाब
इस मुल्क में इसकदर बेरोजगारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

इस कदर हैं बदहाल है मेरा नसीब
कमी पैसों कि मेरी खाईश पे भारी है

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में …

अजनबी  हूँ  इस अजनबी शहर में
तलाश अपनेपन कि यहाँ  जारी है

~ भावार्थ~ 
२५/१२/२०१३ 

Sunday, December 22, 2013

कम हो पर कमी न हो

मुझे इतनी मोहब्बत देना लोगों की
कभी मेरी आँखों में पल को नमी न हो
खुदा मुझ पर इतनी  नज़र बख्से
जिंदगी में चाहे कम हो पर कमी न हो

मेरे दर्द से मेरी माँ को बहुत दुखता है
मेरे आंसू उसका कलेजा चीर देते हैं
मौत आये तो मुझे युही उठा लेना खुदा
मातमं को मेरे आसमाँ हो पर जमीं (माँ )न हो

~ भावार्थ~














Saturday, December 21, 2013

बे करार करके हमको यु न जाईये

बे करार करके हमको यु न जाईये 
आपको हमारी कसम लौट आईये 

देखिये वो काली काली बदलियाँ 
जुल्फ कि घटा चुरा ले न कहीं 
चोरी चोरी आके शोख बिजलियाँ 
आपकी अदा चुरा ले न कहीं 
यु कदम ना आगे बढाईये 
आपको हमारी कसम लौट आईये 

बे करार करके हमको यु न जाईये 
आपको हमारी कसम लौट आईये 

जिंदगी के रास्ते अजीब हैं 
इन में इस तरह चला न कीजिये 
खैर है इसी में आपकी हुज़ूर 
अपना कोई साथी ढूंढ लीजिये 
सुनके दिल कि बात यु न मुस्कुराइए 
आपको हमारी कसम लौट आईये 

बे करार करके हमको यु न जाईये 
आपको हमारी कसम लौट आईये

देखिये गुलाब की वोह डालियाँ 
बढ़के चूम ले ना आप के कदम 
खोये खोये भंवरे भी हैं बाग़ में 
कोई आपको बना ना ले सनम 
बहकी बहकी नज़रो से खुद को बचाइये 
आपको हमारी कसम लौट आईये 

बे करार करके हमको यु न जाईये 
आपको हमारी कसम लौट आईये

~ शकील बदायूँ ~ 

Saturday, December 7, 2013

मत घूरो मुझे

मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है
मत घूरो मुझे

झाकने को भीतर मेरे कुछ नहीं है
जो है वो तेरी कल्पना है
एक सिलसिला है तेरे ख्यालों का
एक घोंसला जो तूने बुना है

मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है

आंखों से वीभत्स क्यों
हो तुम ओ अजनबी
सिरहन सी दौड़ जाती है
उस नज़र से देखते हो कभी

मत घूरो मुझे
बड़ा अजीब सा लगता है

~ भावार्थ ~ 









Friday, December 6, 2013

सब माटी तू कुम्हार -२

सब माटी तू कुम्हार -२
सब तेरो क्या हमार

सब माटी तू कुम्हार -२

कन  से लेकर इस तन तक
तन से लेकर इस मन तक
सब तेरे ही रूप हज़ार
सब माटी तू कुम्हार -२

सब माटी तू कुम्हार -२

पांच तत्व तू हाथ रखे
जिनसे तू संसार रचे
ना  फिर भी तेरा आकार
सब माटी तू कुम्हार -२

भावार्थ