Wednesday, April 10, 2013

मैं बस माटी हूँ





मेरे तन पे मरने वालो वहशी नज़र को भरने वालो
कुछ और नहीं मैं बस माटी हूँ

भू से उठा आकाश बना
आकाश गिरा पानी बन कर
कण कण से ये आकार बना
आकार मिटा भू से मिल कर
इस काया में कुछ और नहीं मैं बस माटी  हूँ

अफकार का क्या है श्रृंगार का क्या है
क्या क्या रूप सजाते हैं
कलाकार का क्या है  संसार का क्या है
क्या क्या रूप बनाते हैं
मिट जाए  ये माया गर फिर मैं बस माटी हूँ

माटी  ही हूँ  तुझसी  न सही
सांचे में ढली हूँ कुछ ऐसे
कुछ तुझसी कुछ अलग ही सही
खांचे में खिची हूँ कुछ ऐसे
जल जाऊं तो फिर क्या हूँ मैं बस माटी  हूँ

भावार्थ

"Dedicated to " निर्भया "...

1 comment:

Jolly said...

very simple but very touching