मेरे तन पे मरने वालो वहशी नज़र को भरने वालो
कुछ और नहीं मैं बस माटी हूँ
भू से उठा आकाश बना
आकाश गिरा पानी बन कर
कण कण से ये आकार बना
आकार मिटा भू से मिल कर
इस काया में कुछ और नहीं मैं बस माटी हूँ
अफकार का क्या है श्रृंगार का क्या है
क्या क्या रूप सजाते हैं
कलाकार का क्या है संसार का क्या है
क्या क्या रूप बनाते हैं
मिट जाए ये माया गर फिर मैं बस माटी हूँ
माटी ही हूँ तुझसी न सही
सांचे में ढली हूँ कुछ ऐसे
कुछ तुझसी कुछ अलग ही सही
खांचे में खिची हूँ कुछ ऐसे
जल जाऊं तो फिर क्या हूँ मैं बस माटी हूँ
भावार्थ
"Dedicated to " निर्भया "...
1 comment:
very simple but very touching
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