Saturday, August 11, 2012

मैं फिर भी हार गया...

तुरुप का इक्का था पास मेरे...
मैं फिर भी हार गया...
हर एक हथियार था पास मेरे ...
मैं फिर भी हार गया...

मोहब्बत में बसा था मेरे दर्द का जहाँ 
हर एक खंजर पे मिला अपनों का निशाँ...
करके टुकड़े दिल के हज़ार मेरे...
मैं फिर भी हार गया...

मेरे उजालों में छुपे अँधेरे कितने ...
गम के सागर में डूबे किनारे कितने...
छुप छुप कर बहाए दिल ने आंसू मेरे...
मैं फिर भी हार गया...

भावार्थ...

 







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