ये न पूछो उम्र कितनी है
इस माटी के खिलोने की
गर पूछो तो चमक कितनी
इस भीतर बसे सोने की
बढ़ाना भी है तो तजुर्बा बढाओ
साल दर साल जश्न का मतलब क्या है
जिंदगी काम किसी के आ सके तो अच्छा ...
वरना झूठे लोगों में कहकहों का मतलब क्या है
अजीब राहगीर है हम भी दुनिया में
न राह का पता न मंजिल की खबर
मुद्दतों से जिससे है तड़पते रहे
उसी में अब भी डूबे आते हैं नज़र
एक और घडा भरेगा फूट जायेगा
न रहेगा घट का और पानी का निशाँ
जिन्दा था तू भी कभी इसी मिटटी पे
कुछ तो कर रह जाए उस करनी की निशा
भावार्थ
इस माटी के खिलोने की
गर पूछो तो चमक कितनी
इस भीतर बसे सोने की
बढ़ाना भी है तो तजुर्बा बढाओ
साल दर साल जश्न का मतलब क्या है
जिंदगी काम किसी के आ सके तो अच्छा ...
वरना झूठे लोगों में कहकहों का मतलब क्या है
अजीब राहगीर है हम भी दुनिया में
न राह का पता न मंजिल की खबर
मुद्दतों से जिससे है तड़पते रहे
उसी में अब भी डूबे आते हैं नज़र
एक और घडा भरेगा फूट जायेगा
न रहेगा घट का और पानी का निशाँ
जिन्दा था तू भी कभी इसी मिटटी पे
कुछ तो कर रह जाए उस करनी की निशा
भावार्थ