Tuesday, August 28, 2012

ये न पूछो उम्र कितनी है

ये न पूछो उम्र कितनी है
इस माटी के खिलोने की
गर पूछो तो चमक कितनी
इस भीतर बसे सोने की

बढ़ाना भी है तो तजुर्बा बढाओ
साल दर साल जश्न का मतलब क्या है
जिंदगी काम किसी के आ सके तो अच्छा ...
वरना झूठे लोगों में कहकहों का मतलब क्या है

अजीब राहगीर है हम भी दुनिया में
न राह का पता न मंजिल की खबर
मुद्दतों से जिससे है तड़पते रहे
उसी में अब भी डूबे आते हैं नज़र

एक और घडा भरेगा फूट जायेगा
न रहेगा घट का और पानी का निशाँ
जिन्दा था तू भी कभी इसी मिटटी पे
कुछ तो कर रह जाए उस करनी की निशा

भावार्थ













Thursday, August 23, 2012

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...
याद रह जायेगी ये बात करीब आ जाओ...

एक मुद्दत से तमन्ना थी तुम्हें चूने की ...
आज बस में नहीं जज्बात करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

सर्द झोंक्जो से धड़कते हैं बदन में शोले..
जान ले लेगी ये बरसात करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

इस कदर हमसे झिझकने की जरूरत क्या है..
जिंदगी भर का है अब साथ करीब आ जाओ...

दूर रहकर न करो बात करीब आ जाओ...

साहिर लुधियानवी...


 

Monday, August 20, 2012

इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...

इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...
अपने मोहल्ले के हम लाट साब...

इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...

तन तनाकर हैं चलते ...
भन भनाकर है चलते  ...
खुद को समझते हम बेहिसाब...
अपने मोहल्ले के हम लाट साब...

इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...

पापा की बक बक...
मम्मी की चक चक...
कौन रखे इन सब का हिसाब...
अपने मोहल्ले के हम लाट साब
इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...

ये कौन है वो कौन है...
वो पूछते और हम मौन हैं ...
सच्चे सवालों के देते झूठे जवाब...
अपने मोहल्ले के हम लाट साब...

इमली सी दुनिया लड्डू से खाब...

भावार्थ...

Wednesday, August 15, 2012

सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

हर एक रूह जो देश में रह रही..
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

रंग फीके हुए रंगीले फूलों के...
बहाव बूँद हुए बहती झीलों के...

हर एक नदी जो यहाँ पर बह रही...
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

जख्म खाए थे संग जिसे पाने को...
आमदा क्यों हैं हम उसे गवाने को...

रहे मुझसी सदा ये हवा कह रही...
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

बिखर जो गए टूट जायेंगे हम...
मिल कर चले दूर  जायेंगे हम...

हर कदम से कुछ देखो राह कह रही...
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

झाँक ले खुद ही के गरेबान में एक...
राम राज बने जो सुधर जाए हर एक...

एक एक सांस जो शख्श में बह रही...
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...

हर एक रूह जो देश में रह रही..
सुनो गौर से है ये क्या कह रही...


Change is possible only when each individual changes. This independence Day is high time to introspect and to assess ourselves so that we can make efforts to make this country a better place to live. Independence is real gift from our freedom fighters who sacrificed their lives in every possible manner so that we can live in free world. Lets pledge to make India proud with our sincere efforts in every walk of our life.

Happy independence Day !!!

( In this poem "freedom/ independence/ aazaadi" wants to say something to its countrymen to make us realise something ,ets hear what it really wants to convery to all of Indians)

भावार्थ...



Saturday, August 11, 2012

उठते गिरते गिरते उठते तू जब सीखेगी चलना...

उठते गिरते गिरते उठते तू  जब सीखेगी चलना...
वो दिन  भी आएगा जब तू छोड़ के जायेगी अंगना...

तेरे खिलोने तेरी गुडिया तेरे रंग और तेरे साज...
तू जो गयी तो बाद तेरे  आते मुझे याद वो आज...

खुद से जुदा हूँ पौना तेरे बिन जो तू नहीं संगना...
वो दिन भी आएगा जब तू छोड़ के जायेगी अंगना...

हाथ हथेली साथ सहेली बन के रही तेरी माँ ...
तुझेसे जीती तुझपे मरती तुझ में बसी है उसकी जाँ ...

आंसू से फीकी हुई उसकी दुनिया कोई रहा रंगना...
वो दिन भी आएगा जब तू छोड़ के जायेगी अंगना...

हाथी घोडा भालू बन्दर तेरे लिए बने बने पापा तेरे ...
बस हस जाए एक पल को हो जाए फिर अरमा मेरे...

खुशियों के गुच्छे लगे हो तू जाए जिस भी अंगना...
वो दिन भी आएगा जब तू छोड़ के जायेगी अंगना...

भावार्थ ...

मैं फिर भी हार गया...

तुरुप का इक्का था पास मेरे...
मैं फिर भी हार गया...
हर एक हथियार था पास मेरे ...
मैं फिर भी हार गया...

मोहब्बत में बसा था मेरे दर्द का जहाँ 
हर एक खंजर पे मिला अपनों का निशाँ...
करके टुकड़े दिल के हज़ार मेरे...
मैं फिर भी हार गया...

मेरे उजालों में छुपे अँधेरे कितने ...
गम के सागर में डूबे किनारे कितने...
छुप छुप कर बहाए दिल ने आंसू मेरे...
मैं फिर भी हार गया...

भावार्थ...

 







Thursday, August 9, 2012

मैं इस उम्मीद पे डूबा की तू बचा लेगा ...

मैं इस उम्मीद पे डूबा की तू बचा लेगा ...
इससे बढ़ कर तू मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

में बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा ...
कोई चराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए...
जो बे अमल हो वो बदला किसी से क्या लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

में उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे...
लकीर हाथ की अपनी वो सब जला लेगा...

अब उसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा...

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उससे रिश्ता वसीम ...
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा...

वसीम बरेलवी...