सच है वक़्त बदल रहा है...
कागज़ पे अलफ़ाज़ नहीं रहे...
गुलजारों में कूकते साज नहीं रहे...
छुप सकें अपनों में वो राज नहीं रहे...
सच है वक़्त बदल रहा है...
जमीन को पूजने वाले किसान नहीं रहे...
नयी सोच लिए नौजवान नहीं रहे...
तिरंगे के जूनून के निशान नहीं रहे...
सच है वक़्त बदल रहा है...
रिश्तो में वो मिठास नहीं रही...
खुदा से बाशिंदों को आस नहीं रही...
दुआएं लिए माँ अब पास नहीं रही...
सच है वक़्त बदल रहा है...
भावार्थ...
कागज़ पे अलफ़ाज़ नहीं रहे...
गुलजारों में कूकते साज नहीं रहे...
छुप सकें अपनों में वो राज नहीं रहे...
सच है वक़्त बदल रहा है...
जमीन को पूजने वाले किसान नहीं रहे...
नयी सोच लिए नौजवान नहीं रहे...
तिरंगे के जूनून के निशान नहीं रहे...
सच है वक़्त बदल रहा है...
रिश्तो में वो मिठास नहीं रही...
खुदा से बाशिंदों को आस नहीं रही...
दुआएं लिए माँ अब पास नहीं रही...
सच है वक़्त बदल रहा है...
भावार्थ...
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