Sunday, June 10, 2012

कबीर

माटी कहे कुम्हार से तू क्या रोंधे मोय ..
एक दिन ऐसा आएगा में रोधुंगी तोय ...

बुरा जो देखन में चला बुरा न मिलया  कोय...
जो मन देखा आपना मुझसा बुरा न कोय...

भला हुआ मेरी मटकी फूट गयी...
पनियां भरण से में अब छूट गयी...

ये तो घर है प्रेम का खाला का घर नाहीं...
सीश उतारे भू धरे तब बैठे घर माहीं....

हमन हैं इश्क मस्ताना हमन को हुशारी क्या...
रहा आजदी या जग से हमन दुनिया से यारी क्या...

कहना था को कह दिया अब कुछ कहा न जाय...
एक गया जो जा रहा दरिया लहर  समाय ..

हंस हंस कुंठ न पाया जिन पाया तिन रोय ...
हांसी खेल पिया मिले कौन सुहागन रोय...

जाको रखो सैयां माएर सके न कोय।..
बाल न बांका कर सके जो जग बैरी होय...

सुखिया  सब संसार है खाये और सोय..
दुखिया दास कबीर है जागे और रोय ...


कबीर

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