में जब भी रूठा था कभी...
उसने हँस के मना लिया था मुझे...
मूह फेर के जो दूर जा बैठा...
पास उसने बुला लिया था मुझे...
सालों तक चला सिलसिला...
उसको मुझसे न कभी हुआ गिला...
पर आज में सुबह से तुनक के बैठा हूँ...
यही सोच कर की आएगी मेरे पास...
मुस्कुराएगी, गुनगुनायेगी ....
मगर वो नहीं आई...
सुबह चल कर शाम तक पहुंची...
रात के किनारे पे मैंने उसे छुआ ...
तो उसकी आँख फिर नहीं खुली...
कोसता रह गया में ख़ुद को...
पुरे दिन वो मेरे साथ रही ....
और में उससे कुछ अलफ़ाज़ भी न कह सका...
ये भी नहीं कह सका में रूठा नहीं था...
और उससे कितनी मोहब्बत है मुझे...
बस यही गम है...
...भावार्थ
4 comments:
सुन्दर भाव लिए हुए सुन्दर रचना !!!
अच्छा लिखा आपने है ...
आभार ......
Kaash Tune payar se bulaya hoota,
Apna Dil cheer ke dikhaya hoota.
Woh bhi dekhte,tere pyar ka raang,
Door ho jate gile shike aur gaam.
.....Faiz
सुन्दर भावों को बखूबी शब्द जिस खूबसूरती से तराशा है। काबिले तारीफ है।
Post a Comment