Friday, August 6, 2010

अर्ज़ !!!

वो इस अदा से झूठ कहा करती है...
कि उसकी हर बात सच लगा करती है...
मुझे मालूम है वो नाजनीन बेवफा है...
एक तरफ़ा मोहब्बत यु ही हुआ करती है...

काश पास हमारे भी तुमसे तरीके होते...
हमारी बातों में भी तुम्हारे से सलीके होते...
तुम्हे पाकर भी तुम्हे शायद पा सकता...
प्यार के कायदे भी कभी जो हमने सीखे होते...

लौट आ कब तक यादों से दिल बहलायेगा...
दिल का दिया कितनी रातों तक जलाएगा...
तस्वीर थी, बुत थी तेरा बहम थी वो...
जिंदगी जो न थी कब तक उसे जिए जाएगा...

कांच से कलाई पे मेरा नाम लिखती रही...
मेरे नाम से सुर्ख लकीरें निकलती रही...
मोहब्बत इतनी थी उसे मेरे नाम से...
अपने ही हाथो से मोम सी वो पिघलती रही...

...भावार्थ

3 comments:

Anonymous said...

beautiful piece of poetry!!!

Anonymous said...

beautiful piece of poetry!!!

दीपक said...

वा! वा! क्या बात है