गीली मिटटी जब घुलने वाली हो...
उसे गीले हाथो से साधो...
चाक को तेजी से घुमाओ ...
और नन्हे नन्हे दिए को जीवन दे दो...
यही दिए जो मत-मैली मिटटी से बने हैं...
अभी आग में घंटो पकेंगे...
मिटटी फ़िर आग का रंग ओढ़ लेगी...
गीली सीरत उसकी पत्थर सा मोड़ लेगी...
ये तो बस खांचा है कंकाल है...
कितने ही दिए ऐसे बनकर ढेर में गुम हैं...
मगर कुछ दिए जिनके सीने में घी उडेल कर...
उनमें जब रुई की बाती पिरोई जाती है...
पूजा की आंच जब उसे दी जाती है...
तब वो दिया उजाला बिखेरने लगता है...
राम के घर लौटने की खुशी में झूमने लगता है...
मिटटी से उजाले की कहानी युही कही जाती है...
जगमगाते दियो की माला ही दीपावली कही जाती है...
...भावार्थ
(आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !!!)
2 comments:
अच्छी रचना.
अप्प दीपो भव!
इस साल ओबामा ने दीपावली मनाई, आगे से हर देश प्रकाश पर्व मनाए.
हार्दिक शुभकामनाएँ.
thankyou !!
and same to you, may god bless you and enlighten each stride you walk............
best wishes
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