काली रात अगर ढय जाए तो क्या होगा...
आसमान अगर बह जाए तो क्या होगा...
धरती ने खीच रखे है हर चीज़ दुनिया की...
समंदर अगर रेत बह जाए तो क्या होगा...
चमक इन तारो से है या सूरज से सबकी...
ये सूरज साँस बन के रह जाए तो क्या होगा...
दीवारें हो तो बस इस सुहानी हवा की हों...
दर्द अगर फूकं से उड़ जाए तो क्या होगा...
खुशी के गुच्छे बाज़ार में मिलने लगे बस...
और चाहते खिलोने बन जाए तो क्या होगा...
अपने पलक झपकते आपको थाम ले आकर...
आँखें मोहब्बत की बन जाए तो क्या होगा...
खाब हर एक हकीकत की रूह बन जाए...
जिंदगी अगर खाब बन जाए तो क्या होगा...
भावार्थ
1 comment:
अपने पलक झपकते आपको थाम ले आकर...
आँखें मोहब्बत की बन जाए तो क्या होगा...
kya hoga ....bas roshan jahan hoga!!:)
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