Thursday, July 16, 2009

कुछ !!!

मैं आस उसकी यु संजोता रहा...
रेत में पानी के बीज बोता रहा...

दिल्लगी खुदा ने कुछ ऐसी की ...
अपनों को इक इक कर खोता रहा...

वफ़ा में उसकी थी एक गाँठ सी...
पाक रिश्ते के तले में रोता रहा...

रास्ते बोलते रहे मैंने सुना ही नहीं...
मैं मंजिलो पे तन्हाई ढोता रहा...

जब ख़ाक हो चुकी हर चाह थी ...
खुदा दिल में अरमा पिरोता रहा..

...भावार्थ

1 comment:

Anonymous said...

इतना कुछ लिख गये,
कुछ कहने बचा नही,
दर्द सारे बाहर आ गये,
कुछ अंदर बचा नही,
बहुत ही उम्दा...