एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर भावार्थ को।अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
Monday, March 30, 2009
भादों !!!
तो हौले से शाम के आगोश में आ गई...
सिली सिली सी हवा ...
मद्धम मद्धम सी सोंधी खुशबू ...
पीपल के पत्तो पे मोती सी बूँदें...
उसने कभी नहीं देखी थी...
धूल दूर दूर तक बोझिल थी...
बच्चो की टोली जो उससे डरती सी थी...
किलकारियां मारती हुई आ पहुँची...
देखते ही देखते बाँझ दुपहरी...
हरी भरी सी भादों की शाम बन गई...
भावार्थ...
Saturday, March 28, 2009
वाकया !!!
जो मद्धम हो चुकी थी वो हवा बदली...
तरसते पपीहे की चाह बदली...
निगोड़े भंवरे की निगाह बदली...
गुनगुनाने वाली की राह बदली...
रिश्तों के गुलज़ार में सुना है
एक और नया फूल खिला है ...
भावर्थ
Thursday, March 26, 2009
तुम यहीं हो मेरे पास !!!
साँसों की तपिश तरह ...
महकी हवा की तरह ...
चहकती सुबह की तरह...
सजती शाम की तरह...
ख्याल के साए में महफूज़ ...
तुम यहीं हो मेरे पास हो...
मेरे हर्फ़ जो हैं ये ....
दूरियों के गम से बुने हैं मैंने...
मोहब्बत की कशिश से चुने हैं मैंने ...
एहसासों का शामियाना जो ...
जो मेरी तेरी बातों से बना है...
आज भी तन्हाई की धुप से ...
कसक की हिलोरे से...
बचाता है मुझे हर पल हर लम्हे...
लम्हे भर को मुझे फ़िर लगा ....
तुम यहीं हो मेरे पास !!!
मेरे ख्यालो के साए में महफूज़...
भावार्थ...
Monday, March 23, 2009
दर्द मिन्नत_काश-ऐ-दवा न हुआ
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ
जमा'अ करते हो क्यों रकीबों का ?
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ
हम कहाँ किस्मत आजमाने जायें ?
तू ही जब खंजर आजमा न हुआ
कितने शीरीं हैं तेरे लैब ! की रकीब
गालियाँ खाके बे_मज़ा न हुआ
है ख़बर गर्म उनके आने की
आज ही घर में बोरिया न हुआ !
क्या वोह नमरूद की खुदाई थी
बंदगी में तेरा भला न हुआ
जान दी, दी हुई उसी की थी
हक तो ये है के हक अदा न हुआ
ज़ख्म गर दब गया, लहू न थमा
काम गर रुक गया रावणः हुआ
रहज़नी है की दिल_सितानी है ?
लेके दिल, दिल_सीतां रावणः हुआ
कुच्छ तो पढिये की लोग कहते हैं
"आज 'ग़लिब' घज़ल्सरा न हुआ"
...मिर्जा गालिब
Wednesday, March 18, 2009
बातें !!!
अल्फाज़ ख़ुद ब ख़ुद बनने लगते हैं...
दर्द आँखों के किनोरो से , दिल के कौने से...
हर्फ़ लाता है और पिरो देता है बातो में...
कभी कभी खुशो चेहरे से जाहिर होती है...
तो कभी मुस्कान से तो कभी दिल में...
साड़ी खुशियाँ बायाँ होने को जब बेताब होती है...
तब चमकती आँखें, गालो की लाली...
लबो की थिरक चुन लाती है खुशी...
और भर देती है जुबा को मिसरी सी बातो से...
कभी कभी युही कुछ भी कहने को जी करता है...
वो बातें जो तुम शायद कभी नहीं कहते...
पहनावे की बातें, खाने की बातें...
किसी ने कुछ कहा, किसी को कुछ कहा...
कुछ ऐसा लगा, कुछ वैसा लगा...
दिन भर क्या किया , कैसे किया....
और क्या चल रहा है...ऐसी कितनी ही बातें...
जुबा पे आती है जो जेहेन में भी नहीं आती...
बातें अधूरी है जब तक उनको कोई सुने न...
ख़ुद से बातें करने वाले को पागल कहते हैं लोग...
आज तुम हो...तो में भी बातें करने लगा हूँ !!!
मेरी बातों की भी हमसफ़र हो तुम...
भावार्थ...
Sunday, March 15, 2009
एहसास !!!
अब तक कभी नहीं देखे मैंने ...
मद्धम से तैरते हुए आए ...
और फिजा बन कर छा गए ....
वो सुबह को छु कर आए थे...
उनमें वो रेशमी नमी थी...
रंग ऐसा की रंगोली जैसे नाच जा रही हो...
पाक इतना जैसे कोई आरती गा रही हो...
आसमा हैरान है इस नवेले बादल पे...
जिंदगी का मौसम बदलने वाला है शायद....
भावार्थ...
१५ मार्च २००९,
प्रेरणा : प्राची
Sunday, March 1, 2009
याद तेरी आए !!!
एक पल में क्या से क्या हुआ जादू सा क्या चला ...
तुझसे जुदा हुआ तो में ख़ुद से जुदा हुआ...
आए याद तेरी आए !! जाए जान भी न जाए !!
सूना सूना सा है मौसम बोझिल सी शाम है...
तनहा तनहा हर रास्ता तनहा मुकाम है...
गुलसुम सी लगती है आई है जो हवा...
चुपके चुपके छुप कर रोता है आंसमा...
बेताब धड़कन मेरी आँखों में मेरी धुंआ...
तुझसे जुदा हुआ में ख़ुद से जुदा हुआ...
आए याद तेरी आए !! जाए जान भी न जाए
किसने सोचा था की आएगा ऐसा एक दिन...
खाली खाली होंगे हर पल छिन तेरे बिन ...
बैचैनी है बेताबी है दिल है बुझा बुझा...
मारा मारा दीवाना सा फिरता यहाँ वहां...
साँसे मेरी रुकी रुकी खामोश है सदा ...
तुझसे जुदा हुआ तो आज ख़ुद से जुदा हुआ...
आए याद तेरी आए !!! जाए जान भी न जाए !!!
अमिताभ वर्मा...