Wednesday, May 28, 2014

पीतल को कौन सुनार खरीदेगा

भीड़ से नहीं संग सी तन्हाई से डरा हूँ
जब भी मरा हूँ तेरी जुदाई से मरा हूँ

जो हद है समंदर की किनारों के बीच
उस हद तक मैं तेरी  रुस्वाई से भरा हूँ

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पंख तोड़ के खुद के मैना ने ख़ुदकुशी की
बोलने का करतब दिखाने की खातिर
आज फिर एक तोता पिंजरे में कैद हुआ.....

……

मोहब्बत हो तो जनाजे और कब्र जैसी
दुल्हन सी सजा के लाती है दुनिया इसे
और छोड़ जाती है उस महबूब के आगोश में

.......

गरीब हो क्यों ईमान लिए फिरते हो
तोल भी दो तुम अपने जमीर को
पीतल को कौन सुनार खरीदेगा
बेच तो जाकर इसे किसी अमीर को

……
न रंग, न किताब, न किसी रुत में था
न काबा में समाया न किसी बुत में था
हिरन सी बैचैन रही मेरी शख्शियत
खुदा जो था जैसा था मुझी खुद  में था

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भावार्थ 





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