Sunday, February 23, 2014

बेसहारा हूँ मैं

जिसे रोज जीतने निकला
उसी दुश्मन से रोज हारा हूँ मैं
खुदको किस काम का समझूं
हद दर्जे का नाकारा हूँ मैं
बूझ कर भी न समझ  पाऊँ
इसकदर यहाँ आवारा हूँ मैं
समंदर की  ओख  में भी प्यासा
वो बदनसीब किनारा हूँ मैं
कीट भी बेहतर है मुझ इंसा से
शमा भी नसीब नहीं वो बेज़ारा  हूँ मैं
जो खुद को खुद से न बचा पाये
किस कदर  हुआ  बेसहारा हूँ मैं
जिसे रोज जीतने निकला 'भावार्थ'
उसी दुश्मन से रोज हारा हूँ मैं

~ भावार्थ ~ 




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