Sunday, February 16, 2014

मेरी जुस्तजू का हिरन !!!

मेरी जुस्तजू का हिरन …
मेरे हाथ नहीं आता
इस माया के जंगल में
बहरूपिया बनके  दौड़ता
मेरी जुस्तजू का हिरन …

मैं भी थक जाता हूँ
भागते भागते उसके पीछे
नज़र फिर भी रखता हूँ मैं
सोच कर कि मिलेगा मुझे
मेरी जुस्तजू का हिरन …

वक़्त कि पगडंडी पे चलते
झुर्रियां पड़ गयी जवानी पे
बूढा हो गया मैं  लेकिन
वो आज भी जवान है
मेरी जुस्तजू का हिरन

यही सोच कर निकला था
शिकार कर लाऊंगा उसे
मगर मालूम न था
शिकारी में नहीं वो है
मेरी जुस्तजू का हिरन


~ भावार्थ ~ 

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